विविध >> चमत्कार पौधों के चमत्कार पौधों केउमेश पाण्डे
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इस पुस्तक में कुछ अति सामान्य पौधों के विशिष्ट औषधिक, ज्योतिषीय, ताँत्रिक एवं वास्तु सम्मत सरल प्रयोगों को लिखा जा रहा है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
दो शब्द
प्रकृति में हमारे आसपास ऐसे अनेक वृक्ष हैं जो हमारे लिए परम उपयोगी हैं।
वे वृक्ष हमारे लिए ईश्वर द्वारा प्रदत्त अमूल्य उपहार हैं। इस पुस्तक में
कुछ अति सामान्य पौधों के विशिष्ट औषधिक, ज्योतिषीय, ताँत्रिक एवं वास्तु
सम्मत सरल प्रयोगों को लिखा जा रहा है। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है
कि इस पुस्तक में वर्णित जानकारियाँ आपके लिए अवश्य ही लाभकारी सिद्ध
होंगी। लगभग 4-5 वर्ष पूर्व ‘‘चमत्कारिक
पौधे’’
नामक पुस्तक में मैंने 35 पौधों की इसी प्रकार जानकारी दी थी। मुझे उस
पुस्तक के संबंध में सैकड़ों ज्ञानपिपासु एवं प्रबुद्ध पाठकों से पत्र
प्राप्त हुए और लगातार प्राप्त हो रहे हैं। पत्रों से मुझे ज्ञात हुआ की
सुविज्ञ पाठक और भी अधिक पौधों के बारे में जानना चाहते हैं। सही मायने
में वे पत्र ही इस पुस्तक के प्रणेता हैं।
मैं, उन सभी का हृदय से आभारी हूँ जिन्होंने इस पुस्तक को पूर्ण करने में अपना अमूल्य सहयोग दिया। साथ ही मैं श्री राजीव अग्रवाल जी का विशेष आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने इस पुस्तक को सुन्दर स्वरूप देकर आपके समक्ष प्रस्तुत किया। पुस्तक के संबंध में किसी प्रकार के सुझाव का हार्दिक स्वागत है।
मैं, उन सभी का हृदय से आभारी हूँ जिन्होंने इस पुस्तक को पूर्ण करने में अपना अमूल्य सहयोग दिया। साथ ही मैं श्री राजीव अग्रवाल जी का विशेष आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने इस पुस्तक को सुन्दर स्वरूप देकर आपके समक्ष प्रस्तुत किया। पुस्तक के संबंध में किसी प्रकार के सुझाव का हार्दिक स्वागत है।
उमेश पाण्डे
चंदन
विभिन्न भाषाओं में नाम
हिन्दी- चंदन (सफेद)
मराठी- पांदर
गुजराती- सुखद, चंदन
कन्नड़- श्रीगंधमारा
तेलुगु - चन्दनमु
तमिल-चंदनमार
मलयालम-चंदन्मारं
युनानी- संदल
फारसी- चंदन सुफेद
अरबी- संदले अबायद
अँग्रेजी- SANDAL WOOD
लेटिन- SANTALUM ALBUM
मराठी- पांदर
गुजराती- सुखद, चंदन
कन्नड़- श्रीगंधमारा
तेलुगु - चन्दनमु
तमिल-चंदनमार
मलयालम-चंदन्मारं
युनानी- संदल
फारसी- चंदन सुफेद
अरबी- संदले अबायद
अँग्रेजी- SANDAL WOOD
लेटिन- SANTALUM ALBUM
चंदन सम्पूर्ण भारत में पाया जाने वाला वृक्ष है। यह मध्यम श्रेणी का
वृक्ष होता है। तथा मुख्यत: ठण्डे व शीतोष्ण प्रदेशों में पाया जाता है,
वनस्पति जगत के ‘‘सैण्टेलेसी’’
(SANTALACEAE)
‘‘सैण्टेलम एल्बम’’ (SANTALUM
ALBUM) है।
यह वृक्ष काले अथवा काले भूरे स्तम्भयुक्त लम्बी-लम्बी शाखाओं वाला तथा छोटी-छोटी पत्तियों वाला होता है। इसके पत्ते सलंग किनारे वाले तथा अर्द्धनुकीले सिरे वाले होते हैं। इसके पुष्प छोटे-छोटे सफेद अथवा हल्के नीले-सफेद वर्ण वाले तथा फल मेंहदी के फल के समान गहरे नीले वर्ण के होते हैं। फलों को फोड़ने पर उनमें गहरा नीला द्रव भी निकलता है। जब चंदन 17-18 वर्ष पुराना हो जाता है तब इसके स्तम्भ का केन्द्रीय भाग जिसे हृदय-काष्ठ कहते हैं, महकदार हो जाता है । यही भाग पूजा इत्यादि के काम में विशेष रूप से आता है। चन्दन के वृक्षों में बाहर कोई महक नहीं आती है। सर्प और चंदन का संबंध अतिशयोक्ति है।
यह वृक्ष काले अथवा काले भूरे स्तम्भयुक्त लम्बी-लम्बी शाखाओं वाला तथा छोटी-छोटी पत्तियों वाला होता है। इसके पत्ते सलंग किनारे वाले तथा अर्द्धनुकीले सिरे वाले होते हैं। इसके पुष्प छोटे-छोटे सफेद अथवा हल्के नीले-सफेद वर्ण वाले तथा फल मेंहदी के फल के समान गहरे नीले वर्ण के होते हैं। फलों को फोड़ने पर उनमें गहरा नीला द्रव भी निकलता है। जब चंदन 17-18 वर्ष पुराना हो जाता है तब इसके स्तम्भ का केन्द्रीय भाग जिसे हृदय-काष्ठ कहते हैं, महकदार हो जाता है । यही भाग पूजा इत्यादि के काम में विशेष रूप से आता है। चन्दन के वृक्षों में बाहर कोई महक नहीं आती है। सर्प और चंदन का संबंध अतिशयोक्ति है।
चंदन के औषधिक प्रयोग
शिरोपीड़ा निवारणार्थ-जो व्यक्ति अत्यधिक तनाव के परिणाम स्वरूप शिरोमणि
से पीड़ित रहते हैं उन्हें चंदन की हृदय काष्ट घिसकर रात्रि पर्यन्त
मस्तिष्क पर लगाना चाहिए। इस प्रयोग से शिरोपीड़ा दूर होती है। तनाव नष्ट
होता है। यह अत्यन्त ही शीतल होता है।
सौन्दर्य वृद्धि हेतु- एक लाल फर्शी पर प्रथमत: एक हल्दी की गांठ को जल मिला-मिलाकर घिसें। फिर इसी पेस्ट पर और जल मिलाते हुए चंदन घिसें। इस प्रकार हल्दी व चन्दन से निर्मित पेस्ट को रात्रि में चेहरे पर मल लें, लगा लें। सुबह के समय इसे धो डालें। इस प्रयोग के परिणामस्वरूप चेहरा तरोताजा हो जाता है, झुर्रिया कम हो जाती है, चेहरे की चमक बढ़ती हैं तथा चेहरे का लोच बढ़ता है। स्त्री जाति के लिए यह प्रयोग दिव्य है।
मस्तिष्क में तरावट हेतु-रात्रि के समय चन्दन की थोड़ी सी जड़ को जल में डुबो दें। सुबह जड़ निकालकर अलग कर लें। जल को पी लें। एक ही जड़ कई रोज काम में ला सकते हैं-बशर्ते वह खराब न हो। इस प्रयोग के सम्पन्न करने से मस्तिष्क में तरावट बनी रहती है।
बलवीर्य वृद्धि हेतु-शरीर में बल वीर्य वृद्धि हेतु अथवा प्रजातंत्र के शोधन हेतु लगभग 10 मिलीलीटर चंदनासव में उतना ही जल मिलाकर नित्य भोजन के पश्चात् दोनों समय लेना चाहिए। इसके सेवन से लौंगिक व्याधियों में भी लाभ होता है।
सौन्दर्य वृद्धि हेतु- एक लाल फर्शी पर प्रथमत: एक हल्दी की गांठ को जल मिला-मिलाकर घिसें। फिर इसी पेस्ट पर और जल मिलाते हुए चंदन घिसें। इस प्रकार हल्दी व चन्दन से निर्मित पेस्ट को रात्रि में चेहरे पर मल लें, लगा लें। सुबह के समय इसे धो डालें। इस प्रयोग के परिणामस्वरूप चेहरा तरोताजा हो जाता है, झुर्रिया कम हो जाती है, चेहरे की चमक बढ़ती हैं तथा चेहरे का लोच बढ़ता है। स्त्री जाति के लिए यह प्रयोग दिव्य है।
मस्तिष्क में तरावट हेतु-रात्रि के समय चन्दन की थोड़ी सी जड़ को जल में डुबो दें। सुबह जड़ निकालकर अलग कर लें। जल को पी लें। एक ही जड़ कई रोज काम में ला सकते हैं-बशर्ते वह खराब न हो। इस प्रयोग के सम्पन्न करने से मस्तिष्क में तरावट बनी रहती है।
बलवीर्य वृद्धि हेतु-शरीर में बल वीर्य वृद्धि हेतु अथवा प्रजातंत्र के शोधन हेतु लगभग 10 मिलीलीटर चंदनासव में उतना ही जल मिलाकर नित्य भोजन के पश्चात् दोनों समय लेना चाहिए। इसके सेवन से लौंगिक व्याधियों में भी लाभ होता है।
चंदन के ज्योतिषीय महत्त्व
• शनिग्रह से पीड़ित व्यक्ति को
चंदन की जड़ को
कुछ समय तक अपने स्नान के जल में रखकर फिर उस जल से नित्य स्नान करना
चाहिए।
• केतु ग्रह से पीड़ित व्यक्तियों को चंदन वृक्ष की जड़ में जल में थोड़े से काले तिल मिलाकर चढ़ाना चाहिए।
• मधा नक्षत्र में जन्में व्यक्ति को चन्दन के पौधे का रोपण एवं पालन शुभ होता है।
• केतु ग्रह से पीड़ित व्यक्तियों को चंदन वृक्ष की जड़ में जल में थोड़े से काले तिल मिलाकर चढ़ाना चाहिए।
• मधा नक्षत्र में जन्में व्यक्ति को चन्दन के पौधे का रोपण एवं पालन शुभ होता है।
चंदन के तांत्रिक प्रयोग
• चंदन के वृक्ष की जड़ में
गुरुपुष्य नक्षत्र जिस
दिन पड़े उसके एक दिन पूर्व अर्थात् बुधवार की शाम को थोड़े से पीले चावल
चढ़ा दें, जल चढ़ावें तथा वहाँ दो अगरबत्ती जलाकर हाथ जोड़कर उसे
निमंत्रित करें। दूसरे दिन सुबह-सवेरे बिना किसी धातु के औजार की सहायता
से (नोकदार लकड़ी का प्रयोग कर सकते हैं) उसकी थोड़ी सी जड़ ले आवें । इस
जड़ को घर के मुख्य द्वार पर अथवा बैठक में लटकाने से घर में बेवजह की
समस्याएँ खड़ी नहीं होती हैं।
• चंदन का तिलक नित्य लगाने से आकर्षण होता है।
• जो व्यक्ति शुभ मुहूर्त में निकाली गई चंदन की जड़ के एक टुकड़े को एवं साथ में एक छोटे से फिटकरी के टुकड़े को अपनी कमर में बाँधकर संभोगरत होता है उसका स्खलन काल बढ़ जाता है।
• चंदन की छाल का धुँआ देने से नजर-दोष जाता रहता है।
• चंदन का तिलक नित्य लगाने से मानसिक शांति में वृद्धि होती है।
• घर में चंदन चूरा, अश्वगंधा, गोखरूचूर्ण और कपूर को शुद्ध घी में मिलाकर जलते हुए कण्डे पर हवन करने से वास्तु दोष दूर हो जाते हैं।
• चंदन का तिलक नित्य लगाने से आकर्षण होता है।
• जो व्यक्ति शुभ मुहूर्त में निकाली गई चंदन की जड़ के एक टुकड़े को एवं साथ में एक छोटे से फिटकरी के टुकड़े को अपनी कमर में बाँधकर संभोगरत होता है उसका स्खलन काल बढ़ जाता है।
• चंदन की छाल का धुँआ देने से नजर-दोष जाता रहता है।
• चंदन का तिलक नित्य लगाने से मानसिक शांति में वृद्धि होती है।
• घर में चंदन चूरा, अश्वगंधा, गोखरूचूर्ण और कपूर को शुद्ध घी में मिलाकर जलते हुए कण्डे पर हवन करने से वास्तु दोष दूर हो जाते हैं।
चंदन के वास्तु-महत्त्व
चंदन का वृक्ष घर की सीमा में शुभ होता है। मुख्यत: इसे घर की सीमा में
पश्चिम अथवा दक्षिण दिशा में लगाना श्रेयस्कर है। जिस घर में चंदन का
वृक्ष होता है वहाँ शान्ति एवं अमन रहता है। रहवासियों में प्रेम बना रहता
है। वहाँ की वंशवृद्धि नहीं रुकती।
कनेर
विभिन्न भाषाओं में नाम
हिन्दी- कनेर
मराठी- कन्हेर
गुजराती- कन्हेर
कन्नड़- कानीगालू
तेलुगु - गन्ने
तमिल-अरली
मलयालम-अरली
बंगला- करावी
पंजाबी- कनेर
उड़िया- कराबी
अँग्रेजी- OLEANDER
लेटिन- NERIUM INDICUM
मराठी- कन्हेर
गुजराती- कन्हेर
कन्नड़- कानीगालू
तेलुगु - गन्ने
तमिल-अरली
मलयालम-अरली
बंगला- करावी
पंजाबी- कनेर
उड़िया- कराबी
अँग्रेजी- OLEANDER
लेटिन- NERIUM INDICUM
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- चंदन
- कनेर
- मौलश्री
- सेमल
- पारस पीपल
- कचनार
- छोटी अरणी (क्षुद्राग्निमन्थ)
- सूर्यमुखी
- अरणी (अग्निमन्थ)
- रक्त चित्रक (लाल चीता)
- लजालू
- सफेद चित्रक
- रीठा
- अडूसा (वासा)
- नागदमन
- जायफल
- छोटा गोखरू (शंकेश्वर)
- फालसा
- हाड़जोड़
- नीबू
- शीशम
- शमी
- छोटी इलायची
- खिरनी
- शहतूत
- केवड़ा
- गुलाबाँस
- कटहल
- सिरिस
- गुलतुर्रा
- लौंग
- छतिवन (सप्तपर्ण)
- चाँदनी
- इमली
- 'राल' अथवा 'साल'
- कत्था
- सेहन्द
- मेनफल
- मालकांगनी
- रामफल
- मीठा नीम
- बहेड़ा
- वृक्षों के रोपण हेतु कुछ खास बातें
अनुक्रम
विनामूल्य पूर्वावलोकन
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